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मुंबई हाई कोर्ट के द्वारा पति-पत्नी को लेकर की गई बड़ी घोषणा

Bombay High Court द्वारा पति-पत्नी को लेकर घरेलू जिम्मेदारियां के लिए एक नई टिप्पणी की गई है, कि किस तरह एक व्यक्ति ने अपने रिश्ते को लेकर मुंबई हाई कोर्ट में अपील की। जिसको खारिज करते हुए हाईकोर्ट में यह टिप्पणी की आईए जानते हैं पूरा मामला। 
 
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मुंबई उच्च न्यायालय के द्वारा यह टिप्पणी की गई है कि आधुनिक समाज में घर के सभी जिम्मेदारियां को पति-पत्नी द्वारा समान रूप से उठाना चाहिए। न्यायमूर्ति नितिन शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने एक व्यक्ति द्वारा की गई अपील को खारिज करते हुए 6 सितंबर को यह टिप्पणी की। 35 वर्ष के इस व्यक्ति ने अपनी पुरानी शादी को खत्म करने की मांग की थी उसने कहा था कि हमें आपस में नहीं रहना और हम दूसरे से अलग होना चाहते हैं। 2010 में दोनों की शादी हुई थी और 2018 में पति पत्नी ने पारिवारिक अदालत में एक याचिका दायर की थी जिसे न्यायाधीशों ने खरीद कर दी और यह याचिका पत्नी के खिलाफ क्रुरता के लिए थी जिसे साबित नहीं किया जा सका। 

महिला करती थी यह काम

व्यक्ति ने याचिका में कहा है कि उसकी पत्नी हमेशा ही अपनी मां के साथ फोन पर लगी रहती थी और घर का कोई भी काम नहीं करती थी। वहीं दूसरी और महिला का कहना है कि जब वह थकी हारी जॉब से घर लौटती थी तो उसे घर का काम करने के लिए मजबूर किया जाता था। और जब उसने इस योग दुर्व्यवहार के लिए अपने घर में संपर्क किया तो, पति के द्वारा उसका शारीरिक शोषण भी किया जाता था। यह पत्नी का बयान है जो कि उसने न्यायाधीशों के सामने रखा। 

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न्यायधीशों ने दिया बयान
पुरुष और महिला दोनों की बातों को सुनते हुए न्यायाधीश ने यह कहा कि पुरुष और महिला दोनों ही काम करने जाते हैं। और वहीं दूसरी ओर पत्नी से सभी घर के काम की उम्मीद भी करना यह एक गलत मानसिकता को दर्शाता है। जहां समाज इतना आगे पहुंच चुका है पति-पत्नी दोनों ही जॉब करने के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियां का बोझ भी समान रूप से उठाएं तो ही घर का वहन अच्छे से हो पता है। कुछ ऐसी मानसिकता वाले लोग जो घर की औरतों से ही केवल काम करने की उम्मीद रखते हैं तो वह सकारात्मक को नही दर्शाते हैं। 

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अदालत में यह भी बयान दिया कि वैवाहिक संबंध से जुड़ने पर मां-बाप को अलग नहीं कर देना चाहिए और इसके अलावा ना ही उनसे संबंध तोड़ने के लिए सोचना चाहिए। अगर माता-पिता से संबंध रखने और उनसे संपर्क करने में दूसरे पक्ष को किसी तरह की समस्या होती है, तो वह बैठकर बात करें यह एक दूसरे को मानसिक पीड़ा देने का वाक्य नहीं है।