आज भी इस भारतीय रेलवे स्टेशन पर है अंग्रेजों का कब्जा, भारत सरकार को देना परता है करोड़ो का टैक्स

अपने इतिहास के पन्नों में पढ़ा होगा कि हमारे देश में अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक राज किया था। समय के साथ-साथ इन्होंने भारतीयों पर इतने अत्याचार किए थे। जो कि आज तक बुलाए नहीं भूले जा सकते हैं। अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में कई नई विरासतों को अभी निर्माण किया था। जो आज भी हमारे देश की धरोहर के रूप में जाने जाती हैं। और वह भारत का गौरव भी है। ऐसे में भारत का जो रेलवे है। आज एशिया का दूसरा बड़ा और विश्व का चौथे नंबर का बड़ा रेलवे का नेटवर्क माना जाता है। यह भारत में अंग्रेजों की ही देन है। सन 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद में भारतीय रेल एक सार्वजनिक सेवा रेल बन गई थी। इतना ही नहीं भारतीय रेलवे ने 12 लाख कर्मचारियों के साथ में दुनिया का सबसे बड़ा कमर्शियल संगठन तैयार कर लिया है।
आज भी हमारे देश में रेलवे विभाग ने कई ऐसे राज्य छुपा रखे हैं। जो की आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी लोगों की नजरों में नहीं है। भारतीय रेलवे का एक ट्रैक ब्रिटिश कंपनी के अंतर्गत आता है। हमारा देश अर्थात रेलवे विभाग इस ट्रैक की देखरेख करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर देता है। एक तरह से देखा जाए तो यह रेलवे ट्रैक आज भी अंग्रेजों के कब्जे में ही है। इस रेलवे ट्रैक का नाम शकुंतला रेलवे ट्रैक है। जो की महाराष्ट्र जिले में है। यह महाराष्ट्र के अमरावती से मूर्तिजापुर तक आता है। इस ट्रैक की लंबाई लगभग 190 किलोमीटर की है। जिसके लिए सरकार हर साल इतना पैसा खर्च करती है।
क्यों बनाया गया यह ट्रैक
अब जरूर आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर यह रेलवे ट्रैक बनाया ही क्यों? तो आपको बता दे की अमरावती महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कपास की खेती होती है। कपास की खेती के लिए मुंबई बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए इसी ट्रैक को कम में लेते हैं। इस रेलवे ट्रैक को बनाने के लिए ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी ने सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी की स्थापना भी की। स्ट्राइक का निर्माण सन 1903 हुआ था। जो सन 1916 में बनकर पूरी तरह तैयार हो गया था।
ट्रैक पर चल रही है एक पैसेंजर ट्रेन
आपको बता दे कि इस शाकुंतलम ट्रैक पर केवल एक ही ट्रेन चलाई जा रही है। इस पैसेंजर ट्रेन का नाम शकुंतला पैसेंजर ट्रेन है। इसी वजह से इस रेलवे ट्रैक का नाम शकुंतला रेलवे ट्रैक हो गया। सन 1994 में यहां इस ट्रैक पर भाप के इंजन की जगह डीजल वाले इंजन लगा दिए गए। इस ट्रेन से निकलने वाली यह ट्रेन 17 स्टेशन पर रख कर अपनी यात्रा को 7 से 8 घंटे में पूरा करती हैं।
सालाना टैक्स 1 करोड़ 20 लख रुपए
आजादी के बाद भारतीय रेलवे का एक कॉन्ट्रैक्ट ब्रिटिश कंपनी के साथ में हुआ था। इस कांटेक्ट के अंतर्गत भारतीय रेलवे विभाग के द्वारा ब्रिटिश किस कंपनी को रॉयल्टी दी जाएगी। रॉयल्टी के मुताबिक हर साल भारतीय रेलवे के द्वारा एक करोड़ 20 लख रुपए लगन के रूप में दिए जाएंगे।
ब्रिटिश की इस कंपनी को भारी भरकम रॉयल्टी मिलने के बाद भी इस ट्रैक पर आज तक किसी तरह की कोई मेंटेनेंस का ध्यान नहीं दिया गया है। यह ट्रैक बिल्कुल बेकार हो चुका है। सन 2020 में शकुंतला एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेन को भी चलने से बंद कर दिया। लेकिन वहां के रहने वाले लोकल नागरिकों ने इसको वापस से चलने के लिए मांग की है। ऐसा भी कहा गया कि भारतीय रेलवे विभाग के द्वारा इस ट्रैक को वापस से खरीदने के लिए पूरी कोशिश की गई थी लेकिन उन्होंने इसको देने से मना कर दिया।