पशुपति व्रत का नियम क्या है? इस व्रत को करने से क्या लाभ है और इसका महत्व..!

भगवान शिव को भोले नाथ भोले भंडारी भी कहा जाता है। भगवान शिव को अपने सभी व्रतों में से सबसे ज्यादा प्रिय पशुपति का व्रत होता है। भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है। इस व्रत के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है लेकिन इन दिनों इस व्रत का महत्व और इसका फल बहुत ज्यादा देखने को मिला है।
शास्त्रों में पशुपति व्रत का नियम बताए गए हैं। और इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर होती है और उसकी सब इच्छाएं भी पूरी होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी आर्थिक समस्याओं से परेशान है या किसी भी तरह के वैवाहिक जीवन से दुखी है तो वह इस व्रत को कर सकता है।
पशुपतिनाथ का व्रत एक संकट मोचन व्रत की तरह होता है। इस व्रत को शुरू करने के लिए कोई दिन तिथी वार मुहूर्त की भी जरूरत नहीं पड़ती है। आइए हम आपको बताते हैं कि पशुपति व्रत करने की क्या विधि होती है, और इसका क्या महत्व है क्या फल मिल सकता है।
पशुपति व्रत कब किया जाता है
पशुपति व्रत को करने के लिए जरूरी नहीं होता है कि आप किसी तिथि या किसी सही वार का चयन ना करें। जब आपको लगे कि आप बहुत ज्यादा परेशानियों में घिरे हुए हैं या आप पर किसी तरह का कोई संकट आ रहा है। आपको कोई समाधान नहीं दिखाई दे रहा है तो उस स्थिति में आप बिना किसी पंडित या तंत्र-मंत्र के चक्कर में पढ़ कर आप इस व्रत को शुरू कर सकते हैं।
पशुपतिनाथ का व्रत कभी भी शुरू किया जा सकता है। यह एक मोक्षदायिनी व्रत है। इस व्रत को करने से हर समस्या का समाधान आसानी से हो जाता है। पशुपति व्रत को मुख्य रूप से 5 सोमवार तक लगातार करना पड़ता है। तब जाकर आपको इस व्रत के फल का प्रभाव देखने को मिलेगा।
पशुपति व्रत करने के नियम
पशुपति व्रत करने के नियम बहुत साधारण है। जैसे आप सोमवार के दिन इस व्रत को शुरू करते हैं तो सुबह के समय अपनी एक प्लेट में रोली, मोली, चावल, पतासा, कुमकुम, पानी का लोटा और सभी पूजा की सामग्री को रखकर भगवान शिव की आराधना करने के लिए चले जाएं। उसके बाद आप वापस घर आकर उस प्लेट को रख दें।
अगर आपके अंदर व्रत करने की सामर्थ्यता है तो आप निर्जल व्रत भी कर सकती है। अगर आप किसी तरह की बीमारी से घिरी हुई है तो आप एक समय फलाहार कर सकती हैं। उसके बाद आप शाम के समय में वापस उसी प्लेट के अंदर दिए और पूजा का वही समान रखकर, साथ में थोड़ा सा मीठा प्रसाद के लिए बना ले। उसके बाद आप मंदिर में जाकर शाम के समय पूजा करें।
अब आपको मंदिर में छेद दिए एक साथ लगाने हैं। याद रहे 5 दिए आप को जलाने होंगे एक दिया वापस से अपने प्लेट में रखना होगा। इसके साथ आप जो प्रसाद लेकर गए हैं, उसके तीन हिस्से कर के दो हिस्से मंदिर में ही छोड़ दें। इस तरह भगवान की अच्छे से पूजा आराधना करने के बाद वापस उस प्लेट में दिया और एक प्रसाद का हिस्सा लेकर घर आ जाए।
जैसे ही घर आते हैं वहां घर के मुख्य द्वार पर आपको सीधे हाथ की तरफ एक दिया जलाना होगा। उसके बाद आप घर के अंदर भगवान शिव की आराधना करते हुए प्रवेश कर जाए। अब आप भोजन ग्रहण कर सकती है। लेकिन ध्यान रहे सबसे पहले भोजन ग्रहण करने से पहले आपको प्रसाद को ग्रहण करना जरूरी होगा। तब जाकर आप इस व्रत को पूरा कर सकते हैं। इसी तरह से आपको पांच सोमवार तक यह व्रत करना है।
पशुपति व्रत का उद्यापन विधि
पशुपति व्रत का उद्यापन करने के लिए आपको लास्ट वाले सोमवार के दिन सुबह के समय वही पूजा आराधना करनी होगी। जब शाम के समय आप पूजा करें तो पूजा में आप 108 चावल के दाने या बेलपत्र या काली मिर्च लौंग कुछ भी चीज आप 108 भगवान शिव को समर्पित करने के लिए ले जाएं।
इसके अलावा आपको एक नारियल के ऊपर अपनी सामर्थ्य अनुसार पैसे रखकर कलावा डोरा लगा कर भगवान शिव को समर्पित करें। थोड़ा आटा ब्राह्मण को दान देने के लिए भी ले जाए। इस तरह से पशुपति व्रत का उद्यापन किया जाता है।
ध्यान रहे जब आप पशुपति व्रत को कर रहे हैं तो इस व्रत को करने में किसी तरह का दिखावा नहीं होना चाहिए। कहते हैं भगवान को किसी भी तरह का दिखावा पसंद नहीं है। आप अपने सच्चे मन से लगन के साथ में अगर पशुपतिनाथ का व्रत धारण कर रहे हैं तो आपको इसका फल जरुर मिलेगा।