गायत्री जयंती 2023 कब है? जानिए गायत्री मंत्र और गायत्री चालीसा

गायत्री जयंती 2023 में 30 मई 2023 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी। गायत्री माता को वेद माता गायत्री भी कहा जाता है। उन्हीं की याद में गायत्री जयंती मनाई जाती है।वेदो की माता को गायत्री माता को कहा जाता है। हमारे शास्त्र पुराणों के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश के तुल्य माना जाता है।
त्रिमूर्ति भी इनकी आराधना करते हैं।
गायत्री को पार्वती देवी, लक्ष्मी का अवतार माना गया है। गायत्री माता के पास पर 10 हाथ हैं जो कि इनके स्वरूप में चार वेदों को भी दर्शाते हैं। इनका पांचवा सर सर्वशक्तिमान है। गायत्री माता कमल के ऊपर विराजमान होती है। गायत्री माता के दर्शन भगवान विष्णु के समान प्रतीत हैं। भगवान ब्रह्मा की गायत्री मां दूसरी पत्नी है।।
गायत्री जयंती 2023 का है
पुराणों के अनुसार गायत्री जयंती जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष के 11 दिन मनाते हैं ऐसा कहा जाता है कि महागुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को जेष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी को बोला था इसीलिए इस पर्व को गायत्री जयंती के रूप मे मनाते हैं। गायत्री जयंती की उत्पत्ति विश्वामित्र के द्वारा हुई है। दुनिया में अज्ञानता दूर करने में इनका बहुत विशेष महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वैसे गायत्री जयंती ज्यादातर तो गंगा दशहरे के दूसरे दिन ही मनाई जाती है। गंगा दशहरा का हमारे हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है कुछ लोग गंगा दशहरा श्रावण पूर्णिमा के समय में भी मना लेते हैं। श्रावण पूर्णिमा के दौरान गायत्री जयंती को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया जाता है। इस साल 2023 में गायत्री जयंती 30 मई 2020 के दिन मंगलवार को मनाई जाएगी।
गायत्री मंत्र का पाठ
गायत्री मंत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के सब दुख तकलीफ दूर हो जाते हैं सुबह-शाम नियमित रूप से आप गायत्री मंत्र का पाठ करते हैं या बोलते हैं तो आपको अपने जीवन में किसी तरह की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा गायत्री मंत्र इस प्रकार है..
"ओम भूर भुवा स्वाहा तत्सवितुर्वरेंयं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न प्रचोदयात्"
गायत्री मंत्र का हिंदी अनुवाद
ओम के उच्चारण में तीनों शक्तियों का समावेश होता है हे। मां भगवती जिसने सभी शक्तियों का सृजन किया है। ऐसी मां भगवती प्राण दायिनी, दुख हरनी, सुख करनी समस्त रोगों का निवारण करने वाली मां भगवती देवों की देवी की आराधना करती हूं। जिन्होंने मुझे इस तरह का संरक्षण दिया और सभी तरह के ज्ञान से संबंधित शामिल बनाया है ऐसी देवी को मैं प्रणाम करती हूं।
गायत्री चालीसा
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड।
शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥
जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥
चौपाई
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥
अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥
हंसारूढ श्वेताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो शारद शत मुख गुन गावैं॥
चार वेद की मात पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥
महामन्त्र जितने जग माहीं। कोउ गायत्री सम नाहीं॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जगमे आना॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥
मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित हो जावें॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपति युत मोद मनावें॥
भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी। तुम सम ओर दयालु न दानी॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे। सो साधन को सफल बनावे॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी। लहै मनोरथ गृही विरागी॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ। धन वैभव यश तेज उछाउ॥
सकल बढें उपजें सुख नाना। जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥
दोहा
यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय॥