औरंगजेब के सबसे भरोसेमंद सेनापति हिन्दू से मुस्लिम क्यों बना? इसके पीछे है खास वजह

1660 में जन्मे मुर्शीद कुली खान जिनकी मृत्यु 30 जून 1727 में हुई थी। औरंगजेब के दरबार में सबसे वफादार मुर्शिद को माना जाता था इसी के साथ बंगाल के नवाब के तौर पर मुर्शिद जी का नाम घोषित किया गया था। इन्हीं के नाम पर चलते उन्होंने अपनी राजधानी का नाम अपने नाम पर मुर्शिदाबाद कर दिया था।
मुर्शीद कुली खान का नाम पढ़कर ही हमारे दिमाग में एक बात आती है कि, यह मुस्लिम थे। पर ऐसा नहीं है क्योंकि उनका जन्म हिंदू परिवार में हुआ था। यह बात सबको नहीं पता क्योंकि उनके पैदा होते ही उनके माता-पिता ने उन्हें एक मुस्लिम परिवार को गोद दे दिया था। यही कारण था कि वह मुसलमान बन गए। आईये इस लेख में हम आपको मुर्शीद कुली जी के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करते हैं, जो शायद ही लोग जानते हैं।
यह थी मुस्लिम बनने की वजह
मुर्शीद कुली जो कि हिंदू परिवार से संबंध रखते थे। मुर्शीद जी का हिंदू नाम सूर्य नारायण मिश्रा उनके माता-पिता के द्वारा रखा गया था। बताया जाता है कि, मुर्शीद जी के माता-पिता के द्वारा उन्हें बेच दिया गया था, जिस व्यक्ति को उन्होंने बेचा वह मुगल दरबार में अधिकारी के पद पर था। मुर्शीद कुली खान को खरीदने वाले शख्स का नाम मुगल रईस हाजी शफी था। इन्होंने मुर्शिद जी की देखरेख बिल्कुल अपने बेटे की तरह की। जब शफी की मृत्यु हो गई थी, तो उन्होंने विदर्भ में दीवान के अंतर्गत कार्य करना शुरू किया। इसी दौरान तत्कालीन सम्राट जो की औरंगजेब थे, उनका ध्यान अपनी और आकर्षित किया और 1700 में उन्हें बंगाल की ओर रवाना कर दिया गया।
मुर्शिद खान को मिली बंगाल के गवर्नरशिप
मुगल सम्राट फरुख्शियर के द्वारा 1717 मुर्शीद कुली खान को बंगाल का गवर्नर घोषित किया गया। इसी के साथ उन्होंने निजाम और दीवान की कई उपलब्धियां प्राप्त की। इसके बाद लगभग सभी अधिकारों उन्हें मिले और मुर्शीद कुली खान को बंगाल में अपना प्रभुत्व साबित करने में अत्यधिक मददगार साबित हुई। साथ ही मुगल साम्राज्य के बाद उनके संबंध सभी प्रकार से खत्म हो गए।
1700 शताब्दी में बने बंगाल के राज्यपाल
बंगाल का शासन मुर्शीद कुली खान के अधीन ही बचा। बंगाल के प्रांत में औरंगजेब के द्वारा सभी कारों के संग्रह को व्यवस्थित करने के लिए मुर्शिद अली खान को दरबार में नियुक्त किया गया। जो कि दीवान के पद पर थे। मुर्शीद कुली खान को बंगाल के राज्यपाल के तौर पर पदवी दी गई। अब आखिरकार उन्हें दो पद भी मिलने के बाद उनकी बंगाल में स्थिति और भी मजबूत हो गई और दबदबा बन गया।